कम्पवात का अर्थ है शरीर के किसी भी हिस्से में अपने आप ही कम्पन शुरू हो जाना. यह रोग अक्सर 60 वर्ष के बाद अधिक देखने को मिलता है, आज से 15 – 25 वर्ष पहले यह रोग 70 से 80 वर्ष के बाद नजर आती थी . परन्तु खान पान और जीवन के आचार में परिवर्तन होने के कारण यह बीमारी आजकल जल्दी ही शरीर में घर कर जाती है. यह एक प्रकार का वात और वायु रोग है. यदि रोगी का हाथ इस रोग से प्रभावित है तो व्यक्ति भोजन तक भी खाना खाने में सक्षम नहीं हो पाता. रोगी को बहुत परेशानी होती है. अगर पैर इस बीमारी से ग्रसित हो जाता है तो रोगी को चलने फिरने में भी परेशानी का सामना करना पड़ता है. इस बीमारी में मस्तिष्क कार्य करने का आर्डर देता है परन्तु प्रभावित शरीर का अंग इसमें सहयोग देना बंद कर देता है.
सामग्री :-
मेधा क्वाथ :- ३०० ग्राम
दवा बनाने की विधि :-
एक बर्तन में ४०० मिलीलीटर पानी ले इसमें एक चम्मच मेधा क्वाथ की मिलाकर धीमी – धीमी आंच पर थोड़ी देर पकाएं | कुछ देर पकने के बाद जब इसका पानी १०० मिलीलीटर शेष रह जाए तो इसे छानकर सुबह के समय और शाम के समय खाली पेट पीये |
सामग्री : -
एकांगवीर रस (ekangveer rasa) :- १० ग्राम
मुक्ता पिष्टी (mukta pisti) :- ४ ग्राम
वसंतकुसुमाकर रस (vasant kusumaakar rasa) :- १ ग्राम
स्वर्ण माक्षिक भस्म (swaran makshik bhasma) :- ५ ग्राम
प्रवाल पिष्टी (praval pisti) :- १० ग्राम
रसराज रस (rasaraj rasa) :- १ ग्राम
गिलोय सत (giloy sat) :- १० ग्राम
मकरध्वज (makardwaj) :- २ ग्राम
उपरोक्त औषधियों को आपस में मिलाकर एक मिश्रण बनाए | इस मिश्रण की बराबर की मात्रा में दो महीने की खुराक यानि ६० पुड़ियाँ बना ले | और किसी डिब्बे में बंद करके सुरक्षित स्थान पर रख दें | प्रतिदिन एक पुड़ियाँ सुबह के खाने से पहले और एक पुड़ियाँ रत के खाने से पहले खाएं | इन औषधियों को ताज़े पानी के साथ या शहद के साथ प्रयोग करे |
सामग्री :-
मेधा वटी (Megha Vati) :- ६० ग्राम
चन्द्रप्रभा वटी (chandra prabha vati) :- ६० ग्राम
त्रियोद्शांग गुग्गुलु (triyodshaang guggal) :- ६० ग्रा
इन तीनों आयुर्वेदिक औषधियों की एक – एक गोली की मात्रा को रोजाना तीन बार खाना खाने के बाद खाए | इन गोलियों का प्रयोग हल्के गर्म पानी के साथ करे |
No comments:
Post a Comment